मैं हार गई
जब कवि-सम्मेलन समाप्त हुआ, तो सारा हॉल हँसी-कहकहों और तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज रहा था। शायद मैं ही एक ऐसी थी, जिसका रोम-रोम क्रोध से जल रहा था। उस सम्मेलन की अंतिम कविता थी, ‘बेटे का भविष्य।’ उसका सारांश कुछ इस प्रकार था, एक पिता अपने बेटे के भविष्य