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शैटगे : जहाँ ज़िंदगी रिसती जाती है
जिनको नहीं आता ऊनी मोज़े और दस्ताने बुननाजैसे नहीं आता यह जीवन जीना ही
सविता सिंह
गतिहीन जीवन की मतिहीन कविता
धूप बची रहती है अचार और पापड़ के स्वाद मेंसर्दी की कँपकँपी ऊनी कपड़ों के गठ्ठर में छिपी होती है
लवली गोस्वामी
न कोई उम्मीद, न कोई...
उम्मीदों की लंबी पथरीली सड़क पर चलते हुएहर मोड़ पर खड़ा हो जाता हूँ अचेत प्रश्नाकुल-सा