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नैंक न झुरसी बिरह-झर
नैंक न झुरसी बिरह-झर, नेह लता कुम्हिलाति।नित-नित होति हरी-हरी, खरी झालरति जाति॥
बिहारी
सरिहिँ न सरेहि न सरवरेहिँ
सरिहिँ न सरेहि न सरवरेहिँ न वि उज्जाण-वणेहिं।देस रवण्णा होंति वढ़ निवसन्तेहिँ सुअणेहिं॥
हेमचंद्र
ना कछु हुवा न होइगा
ना कछु हुवा न होइगा, सद्गुरु सब सिरमौर।सुन्दर देख्या सोधि सब, तोले तुलत न और॥
सुंदरदास
बाग़ों ना जा रे ना जा
बाग़ों ना जा रे ना जा, तेरी काया में गुलज़ार।सहस-कँवल पर बैठ के, तू देखे रूप अपार॥
कबीर
भमर न रुणझुणि रण्णडइ
भमर न रुणझुणि रण्णडइ सा दिसि जोइ म रोइ।सा मालइ देसंतरिअ जसु तुहुँ मरहि विओइ॥
हेमचंद्र
सूझत नांहिं न दुष्ट कौं
सूझत नांहिं न दुष्ट कौं, पाँव तरै की आगि।औरन के सिर पर कहै, सुन्दर वासौं भागि॥
सुंदरदास
चरनदास गुरुदेव ने
चरनदास गुरुदेव ने, मो सूँ कह्यो उचार।'दया' अहर निसि जपत रहु, सोहं सुमिरन सार॥
दयाबाई
ना देवल में देव है
ना देवल में देव है, ना मसज़िद खुदाय।बांग देत सुनता नहीं, ना घंटी के बजाय॥
निपट निरंजन
छुटी न सिसुता की झलक
छुटी न सिसुता की झलक, झलक्यौ जोबनु अंग।दीपति देह दुहून मिलि दिपति ताफता-रंग॥
बिहारी
घेरैं नैंकु न रहत है
घेरैं नैंकु न रहत है, ऐसौ मेरौ पूत।पकरें हाथ परै नहीं, सुन्दर मनुवा भूत॥
सुंदरदास
रहिमन मोहि न सुहाय
रहिमन मोहि न सुहाय, अमी पिआवै मान बिनु।बरु, विष देय बुलाय, मान सहित मरिबो भलो॥
रहीम
'दया' कह्यो गुरदेव ने
'दया' कह्यो गुरदेव ने, कूरम को ब्रत लेहि।सब इंद्रिन रोकि करि, सुरत स्वाँस में देहि॥
दयाबाई
काफर सोही आप न बुझे
काफर सोही आप न बुझे, आला दुनिया भर।कहे तुका सुनो रे भाई, हिरदा जिन्ह का कठोर॥