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पीन भई समता विषमता सुखीन भई
दीन भई दीनता प्रवीनता नवीन भई,लोक लोकभक्ति भई त्रिभुवन साँई की॥
रामगुलाम द्विवेदी
जो रे भाई राम दया नहीं करते
जो रे भाई राम दया नहीं करते।नवका नाँव खेवटहरि आपै, यों बनि क्यों निस्तरते॥
दादू दयाल
प्रीति भई भली भई बाढ़ो नित नई-नई
प्रीति भई भली भई बाढ़ो नित नई-नई,हमसों दुराव दई काहे को करति है।