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भारत-भारती / भविष्यत् खंड / आशा
बीती नहीं यद्यपि अभी तक है निराशा की निशा—है किंतु आशा भी कि होगी दीप्त फिर प्राची दिशा।
मैथिलीशरण गुप्त
आशा के न होने पर
जबकि आशा नहीं है इन दिनों, आशा तब भी नहीं थी जब उसने कही थी आशा के लाल ख़ून वाली बात।दो
प्रतीक ओझा
आशा निर्बलता से उत्पन्न होती है,
आशा निर्बलता से उत्पन्न होती है, पर उसके गर्भ से शक्ति का जन्म होता है।
प्रेमचंद
जिन्ह को आशा कछु नहीं
जिन्ह को आशा कछु नहीं, आतम राखे शून्य।तिहँ को नहिं कछु भर्मणा, लागे पाप न पून्य॥
संत बाबालाल
आशा करि आये हैं मलिंद मतवारे मंजु
आशा करि आये हैं मलिंद मतवारे मंजु,उपवन वासी सुख पुंज सरसावेंगे।




