Font by Mehr Nastaliq Web

देह भर

deh bhar

स्वाति मेलकानी

अन्य

अन्य

और अधिकस्वाति मेलकानी

    हम हो सकते थे पेड़ और पहाड़

    और एक दूसरे में समाई

    हमारी जड़ें

    हमसे भी अधिक

    आलिंगनबद्ध रहती

    हम हो सकते थे नदी और झरना

    जहाँ एक का अंत

    दूसरे के आदि को उत्पन्न करता

    या रात और तारे

    जिसमें एक का अंधकार

    दूसरे के प्रकाश हेतु द्वार खोलता

    हम हो सकते थे बादल और बारिश

    जहाँ एक के पिघलने से

    दूसरा बह निकलता

    हम सूर्य और दिन भी हो सकते थे

    जहाँ एक के उगने से

    दूसरा स्वयं उग जाता

    या समुद्र और धरती

    जिसमें एक के ऊपर

    दूसरे के लहराने की

    अपार संभावनाएँ होतीं

    हम हो सकते थे वसंत और फूल

    जहाँ एक के खिलने से

    दूसरे के जाने का एहसास होता

    हम हो सकते थे

    हवा और सुगंध

    जहाँ एक चलने से

    दूसरे को गति मिलती

    सोचो क्या नहीं हो सकते थे हम

    सिवाय दो देह भर होने के

    जिसमें एक स्त्री

    और दूसरी पुरुष की थी...

    स्रोत :
    • रचनाकार : स्वाति मेलकानी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

    संबंधित विषय

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY