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रामधारी सिंह दिनकर: कविता और उनका व्यक्तित्व
मुझे गर्व है कि अपने देश में मैं सर्वप्रथम रहा हूँ, जिसने छठे दशक में दिनकर
एवगेनी पित्रोविच चेलीशेव
अर्धनारीश्वर
बालचंद्र दीपित त्रिपुंड पर, बलिहारी, बलिहारी॥स्पष्ट ही, यह कल्पना शिव और शक्ति के बीच पूर्ण समन्वय
रामधारी सिंह दिनकर
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अरुणोदय
इन ताराओं के पार, इंद्र के गढ़ पर ध्वजा उड़ाने को।सम्मुख असंख्य बाधाएँ हैं, गरदन मरोड़ते बढ़े चलो,
रामधारी सिंह दिनकर
आग की भीख
प्यारे स्वदेश के हित अंगार माँगता हूँ।चढ़ती जवानियों का शृंगार माँगता हूँ।
रामधारी सिंह दिनकर
धर्म संपूर्ण जीवन की पद्धति है
रामधारी सिंह दिनकर
नए ज्ञान के प्रति भारत हमेशा ही उदार रहा है।
रामधारी सिंह दिनकर
दुःख-दर्द
रामधारी सिंह दिनकर
गांधी, बुद्ध, अशोक नाम हैं बड़े दिव्य सपनों के
गांधी, बुद्ध, अशोक नाम हैं बड़े दिव्य सपनों के, भारत स्वयं मनुष्य जाति की बहुत बड़ी कविता है।
रामधारी सिंह दिनकर
पढ़क्कू की सूझ
कहा पढ़क्कू ने सुनकर, “तुम रहे सदा के कोरे!बेवक़ूफ़! मंतिख की बातें समझ सकोगे थोड़े!
रामधारी सिंह दिनकर
भाषा की ख़ानें दो हैं
भाषा की खानें दो हैं। एक पुस्तकों में, दूसरी जनता की जबान पर।