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रामधारी सिंह दिनकर के उद्धरण

नए ज्ञान के प्रति भारत हमेशा ही उदार रहा है। नये धर्मों, नई संस्कृतियों और नई विचारधाराओं को अपना कर भारत भी परिवर्तित होता रहा है, लेकिन विचित्रता की बात यह है कि भारत जितना ही बदलता है, उतना ही वह अपने आत्मस्वरूप के अधिक समीप पहुँच जाता है।