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माधव, आप सदा के कोरे
माधव, आप सदा के कोरे।दीन-दुखी जो तुमको जाँचत, सो दाननि के भोरे॥
सत्यनारायण कविरत्न
राष्ट्र की रक्षा कोरे शास्त्र से नहीं हो सकती
राष्ट्र की रक्षा कोरे शास्त्र से नहीं हो सकती। शस्त्र रक्षित राष्ट्र में ही शास्त्र जन्म लेता है।
लक्ष्मीनारायण मिश्र
काहे कोरे नाना मत सुनै तू पुरातन के
काहे कोरे नाना मत सुनै तू पुरातन के,तैंही कहा तेरी मूढ़ गूढ मति पंग की।
नागरीदास
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दीवाली रा दीया दीठा
कोरे काग़ज़ का भटका संदर्भ
शून्य की इकाइयों का जमघटा—एक बड़ा शून्य।दुनिया की नासमझी है कि मैं हूँ
साैमित्र मोहन
मूर्ख गुरु, मूर्ख चेले
एक मूर्ख गुरु था। वैसे ही उसके बारह चेले थे, एकदम ठूँठ। एक बार वे तीर्थयात्रा
ओ म्हारा मनड़े रा ठाकुर
ओ म्हारा मनड़े रा ठाकुर, गोपीनाथ दयाल।ओ म्हारा कुंजबिहारी, मो संग मुरधर चाल॥
रानाबाई
राजा चला स्वर्ग की ओर
‘आप कौन हैं?' शावकों ने पूछा।‘मैं तुम्हारा मामा हूँ।’ जुलाहे ने कहा।
ब्रजी लोकगीत : रंग मैं कैसे होली खेलूँ री
रंग मैं कैसे होली खेलूँ री, जा साँवरिया के संग।कोरे कोरे कलस मँगाये, तामैं घोरो रंग।
सुण रे क़ाज़ी सुण रे मुल्ला
सुण रे क़ाज़ी सुण रे मुल्ला, सुणियो लोग लुगाई।नर निरहारी एकलवाई, जिन यो रा फरमाई॥