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रसिक प्रिया रस मंजरी
रसिक प्रिया रस मंजरी, और सिंगारहि जांनि।चतुराई करि बहुत बिधि, बिषैं बनाई आंनि॥
सुंदरदास
भरि लोचन बोली प्रिया
भरि लोचन बोली प्रिया, कुंज ओट रिसठानि।पाए जानि तुम्हें अबै, करत प्रीति की हानि॥
कृपाराम
उठि आदर कीन्हों प्रिया पिय
सुंदर
यह दिव्य प्रसाद प्रिया प्रिय कौ
यह दिव्य प्रसाद प्रिया प्रिय कौ।दरसत ही मन मोद बढ़ावत, परसत पाप हरत हिय कौ॥
भगवत रसिक
सोवत पेखि प्रिया कर कंपत
सोवत पेखि प्रिया कर कंपत डोरी निबी की गही खरकौहै।जानि जगी रिस रंग रगी भय भूरि पगी सुलगी थरकौहै॥
गुमान मिश्र
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मंगल आरति प्रिया प्रीतम की
मंगल चरन अरुन तरुवन की मंगल करनि भक्ति हरिजन की।मंगल जुगल प्रिया भावन की मंगल श्री राधाजीवन की॥
जुगलप्रिया
बादल को सामने देखकर प्रिया के समीप
कालिदास
रस रंग भरे अँग संग प्रिया
रस रंग भरे अँग संग प्रिया पिय सोइ गये सुख दे सुख लै।इहि बीच जगे हरिजू उघरी अँगिया पर दीठि गई परिकै॥
सुंदर
सोवतही रति केलि किये पति संग प्रिया
सुंदर
अभी भी मेरा मन तो वहीं है
अभी भी मेरा मन तो वहीं है। उसे मेरी प्रिया ने ऐसा रोक लिया है कि वह मेरी ओर देखता भी नहीं है।
भास
वह प्रिया हमारे चित्त में लीन की तरह
भवभूति
तुम आदि मानव की प्रिया हो
नलिनीबाला देवी
प्रिया संग केलि ठई सपने
प्रिया संग केलि ठई सपने मिलि माधव चित्त लह्यो अति चैन।उरून उठाय उरोज गहे मन लोल भयो अधरामृत लैन॥
बिड़दसिंह माधव
कापालिक प्रिया
एक डिब्बे में बंद कर दी गई है मेरी श्वासमुझे ठूँस दिया गया है एक अँधेरी सुरंग में