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भवभूति के उद्धरण

वह प्रिया हमारे चित्त में लीन की तरह, प्रतिबिंबित की तरह, लिखी गई की तरह, शिला आदि में उत्कीर्ण रूपवाली की तरह, विरह से द्रवीभूत मेरे मन में कामदेव रूप सुवर्णकार द्वारा रचि की तरह, वज्रलेप से जुड़ी हुई की तरह, अंतःकरण में खोदी हुई की तरह, कामदेव के पाँच वाणों से विद्ध की तरह और धारावाही चिंतारूपी सूत्र समूह से निबिडतापूर्वक सिली गई की तरह संबद्ध है।