केदारनाथ सिंह के 10 प्रसिद्ध और सर्वश्रेष्ठ उद्धरण
केदारनाथ सिंह के 10
प्रसिद्ध और सर्वश्रेष्ठ उद्धरण


मैं चाहूँ या न चाहूँ, अपने समाज में अपने सारे मानववाद के बावजूद, मैं एक जाति-विशेष का सदस्य माना जाता हूँ। यह मेरी सामाजिक संरचना की एक ऐसी सीमा है, जिससे मेरे रचनाकार की संवेदना बार-बार टकराती है और क्षत-विक्षत होती है।
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निस्संदेह एक श्रेष्ठ मौलिक कवि की शक्ति की पहचान आगे चलकर इसी बात से की जाएगी कि वह अपने समय की रचना के सामूहिक व्यक्तित्व से किस हद तक अपनी स्वतंत्रता को बनाए रखने में समर्थ हो सका है।
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कई बार एक आलोचक जो कहता है, उससे कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण वह होता है जो वह नहीं कहता।
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मेरा टेलीविज़न लगभग प्रलाप जैसी भाषा में जो लगातार बोलता रहता है, एक ख़ास तरह का प्रदूषण मेरी भाषा की दुनिया में—उसके ज़रिए भी फैलता है।
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मेरी आधुनिकता में मेरे गाँव और शहर के बीच का संबंध किस तरह घटित होता है, इस प्रश्न की विकलता मेरे भाव-बोध का एक अनिवार्य हिस्सा है।
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मेरी आधुनिकता की एक चिंता यह है कि उसमें लालमोहर कहाँ है? मेरी बस्ती के आख़िरी छोर पर रहने वाला लालमोहर वह जीती-जागती सचाई है, जिसकी नीरंध्र निरक्षरता और अज्ञान के आगे मुझे अपनी अर्जित आधुनिकता कई बार विडंबनापूर्ण लगने लगती है।
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आज के कवि का ‘मैं’ एकवचन प्रथम पुरुष का ‘मैं’ न होकर ‘हम’ की तरह अमूर्त और व्यापक हो गया है, और ऐसा किसी बड़े आदर्श के प्रति आग्रह के कारण नहीं, बल्कि अमानवीकरण की एक बृहत्तर प्रक्रिया के अंतर्गत अपने आप और बहुत कुछ कवि के अंजान में ही हो गया है।
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere