मनका सूतकु दूजाभाउ

manka suutaku duujaabhaa.u

गुरु अमरदास

गुरु अमरदास

मनका सूतकु दूजाभाउ

गुरु अमरदास

और अधिकगुरु अमरदास

    मनका सूतकु दूजाभाउ। भरमे भूले आवउ जाउ॥

    मनमुखि सूतकु कवहि जाइ। जिचरु सवदि भीजै हरिकै नाइ॥

    सभु सूतकु जेता मोह आकार। मरि-मरि जामै बारोबार॥

    सूतकु अगनि पउणै पाणी माहि। सूतकु भोजनु जेता किछ खाहि॥

    सूतकि करम पूजा होइ। नामि रते मनु निरमलु होइ॥

    सतिगुरु सेविऐ सुतकु जाइ। मरै जनमै कालु खाइ॥

    सासत सिंमृति सोधि देखहु कोइ। विणु नावै को मुकति होइ॥

    जुग चारे नामु उतमु सबदु वीचारि। कलिमहि गुरमुखि उतरसि पार॥

    साचा मरै आवै जाइ। नानक गुरिमुखि रहै समाइ॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : संत काव्य-धारा (पृष्ठ 158)
    • संपादक : परशुराम चतुर्वेदी
    • रचनाकार : अमरदास
    • प्रकाशन : किताब महल, इलाहाबाद
    • संस्करण : 1981

    संबंधित विषय

    यह पाठ नीचे दिए गये संग्रह में भी शामिल है

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।

    पास यहाँ से प्राप्त कीजिए