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हजारीप्रसाद द्विवेदी के उद्धरण

यह उन्मत्त उत्सव, ये रासक गान, ये शृंगक सीत्कार, ये अबीर-गुलाल, ये चर्चरी और पटह मनुष्य की किसी मानसिक दुर्बलता को छिपाने के लिए है, ये दुःख भुलाने वाली मदिरा है, ये हमारी मानसिक दुर्बलता के पर्दे है। इनका अस्तित्व सिद्ध करता है कि मनुष्य का मन रोगी है, उसकी चिंता-धारा आविल है, उसका पारस्परिक संबंध दुःखपूर्ण है।