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जी. शंकर कुरुप के उद्धरण

यह शरीर केवल एक दीपक है—प्राणों के प्रज्वलित होने के लिए। मिट्टी के इस दीप के प्रति इस प्रकार मुग्ध हो जाना क्या उचित हुआ? लावण्य तो मात्र इंद्रजाल है उस दोप का। हाय, साहसी अनुराग ने आपकी बुद्धि की आँखें मूँद दीं।

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