यह एक मिथक है कि जनता परम अज्ञानी है। यह मिथक उत्पीड़क अभिजनों ने गढ़ा है। अतः यह अपेक्षा करना भोलापन होगा कि उत्पीड़क अभिजन स्वयं इस मिथक को तोड़ेंगे। क्रांतिकारी नेता यदि इस मिथक को नहीं तोड़ते, तो यह एक आत्मविरोधी बात होगी। लेकिन इससे भी ज़्यादा आत्मविरोधी बात यह होगी कि वे स्वयं इस मिथक के अनुसार काम करने लगें।