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गजानन माधव मुक्तिबोध के उद्धरण

यदि लेखक प्रबुद्ध चैतन्यमय अंतर्तत्त्वों का; उनकी वैविध्यपूर्ण किंतु एकात्मक समग्रता में प्रतिबिंबन करता है, तो वह वस्तुतः आभ्यंतर जीवन ही का प्रतिबिंबन कर रहा है—वह आभ्यंतर जीवन, जो बाह्म जीवन ही का एक अंतःक्षेपित रूप है।