यदि इंद्रिय-निग्रह दुकान हो, धैर्य सुनार बने, मनुष्य की अपनी बुद्धि अहरन हो, उस मति अहरन पर ज्ञान का हथौड़ा चोट करे। यदि अकाल-पुरख का भय धौंकनी हो, मेहनत आग हो, प्रेम कुठाली हो, तो हे भाई! उस कुठाली में अकाल-पुरख के नाम-अमृत को गलाया जाए, क्योंकि ऐसी ही सच्ची टकसाल में गुरु का शब्द गढ़ा जा सकता है। ये कार्य-व्यवहार उन्हीं मनुष्यों के ही हैं, जिन पर कृपा-दृष्टि होती है