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श्रीलाल शुक्ल के उद्धरण

व्यापार, सरकारी नौकरी, या अर्थार्जन के ऐसे धंधे—जो प्रत्यक्ष रूप से हमें राज्य-सत्ता पर आश्रित रखते हैं—सही-ग़लत के बारे में हमारी कल्पना को धीरे-धीरे पराश्रित बनाने लगते हैं।