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राधावल्लभ त्रिपाठी के उद्धरण

वाल्मीकि ने मनुष्य के अंतर्मन के उत्ताप और कामना के असीम ज्वार का दर्शन किया है, पर उन्होंने हृदय की पवित्रता और कोमलता को झुलसने नहीं दिया है।