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राधावल्लभ त्रिपाठी के उद्धरण

वाल्मीकि और कालिदास दोनों ही उस क्षेत्र के अन्वेषक हैं, जहाँ जीवन के कर्दम में से स्वतः शतदल खिल उठते हैं। तुलसी जीवन के ललित पक्ष से बचकर रामभक्ति में आश्वासन खोजते हैं अथवा नीतिवादी शब्दावली में उसे धिक्कारते हैं।