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श्रीलाल शुक्ल के उद्धरण

सुविधावादी होने का आरोप तो बकवास है, पर प्रतिष्ठानवाली दिक़्क़त काफ़ी असली है। प्रतिष्ठान के साथ लेखक का; सृजनशील लेखक का संबंध, निश्चय ही ऐसी समस्याओं और तनावों को उभारता है जिन्हें वाग्पटुता से नहीं टाला जा सकता।