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जयशंकर प्रसाद के उद्धरण

सूरदास के वात्सल्य में संकल्पात्मक मौलिक अनुभूति की तीव्रता है, उस विषय की प्रधानता के कारण। श्रीकृष्ण की महाभारत के युद्ध-काल की प्रेरणा सूरदास के हृदय के उतने समीप न थी, जितनो शिशु गोपाल की वृंदावन की लीलाएँ। तुलसीदास के हृदय में वास्तविक अनुभूति तो रामचंद्र की भक्त-रक्षण-समर्थ दयालुता है, न्यायपूर्ण ईश्वरता है, जीव की शुद्धावस्था में पाप-पुण्य-निर्लिप्त कृष्णचंद्र की शिशु-मूर्ति का शुद्धाद्वैतवाद नहीं। ऐसा प्रतीत होता है कि जहाँ आत्मानुभूति की प्रधानता है, वहीं अभिव्यक्ति के क्षेत्र में पूर्णता हो सकी है।

हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

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