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जयशंकर प्रसाद के उद्धरण

स्त्री, जल-सदृश कोमल एवं अधिक से अधिक निरीह है। बाधा देने की सामर्थ्य नहीं, तब भी उसमें एक धारा है, एक गति है, पत्थरों की रुकावट की भी उपेक्षा करके कतराकर वह चली हो जाती है। अपनी संधि खोज ही लेती है, और सब उसके लिए पथ छोड़ देते हैं, सब झुकते हैं, सब लोहा मानते हैं।

हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

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