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गजानन माधव मुक्तिबोध के उद्धरण

शिल्प का विकास, काव्य-व्यक्तित्व से अटूट रूप से जुड़ा हुआ है और उस शिल्प में व्यक्तित्व की क्षमता और सीमा, भाव और अभाव, सामर्थ्य और कमज़ोरी, ज्ञान और भ्रम—सभी प्रत्यज्ञ-अप्रत्यक्ष रूप से प्रकट होते हैं।