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रवींद्रनाथ टैगोर के उद्धरण

संसार के प्रवाह की भी मर्यादाएँ हैं, किनारे हैं। उनके बिना इसका अस्तित्व ही न होता, किंतु संसार का अर्थ इसकी अवरोधक मर्यादाओं में नहीं, बल्कि उस गति में है जो पूर्णता की ओर हो रही है।

अनुवाद : सत्यकाम विद्यालंकार