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गजानन माधव मुक्तिबोध के उद्धरण

रवींद्रनाथ जिस सतह से बोलते हैं, जिस व्यापक जीवन के सर्वोच्च बिंदु पर खड़े होकर देश-देशांतर के जन-समुदाय के सामने वे अपने को प्रकट करते हैं, उस स्थान के अन्य अनुगामी कलाकार नहीं बोल पाते। उतना ही उनमें बौनापन है, जितनी कि रवींद्र में ऊँचाई।