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वेदव्यास के उद्धरण

राजन्! किसी समय धर्म ही अधर्म रूप हो जाता है। और कहीं अधर्म रूप दीखनेवाला कर्म ही धर्मरूप बन जाता है। इसलिए विद्वान पुरुष को धर्म और अधर्म का रहस्य अच्छी तरह समझ लेना चाहिए।