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वेदव्यास के उद्धरण

राजन्! आपका कल्याण हो। मनुष्यों में सदा पाँच प्रकार का बल होता है, उसे सुनिए। जो बाहुबल नामक प्रथम बल है, वह निकृष्ट बल कहलाता है। मंत्री का मिलना दूसरा बल है। मनीषी लोग धन-लाभ को तीसरा बल बताते हैं। पिता-पितामह से प्राप्त 'अभिजात' नामक चौथा बल कहा गया है। हे भारत! जिससे इन सभी बलों की संगृहीत किया जाता है और जो सब बलों में श्रेष्ठ बल है, वह पाँचवा बुद्धि-बल कहा जाता है।