Font by Mehr Nastaliq Web

बंकिम चंद्र चटर्जी के उद्धरण

प्रेम पहले एकमात्र मार्ग पकड़ता है और फिर उपयुक्त समय में शतमुख हो जाता है। प्रणय स्वभावसिद्ध होने पर सैकड़ों पात्रों में पहुँच जाता है-अन्त में गंगा की तरह सागर-संगम में, ईश्वर में, लय को प्राप्त होता है, संसार के सब जीवों में, जो ईश्वर का ही रूप है, विलीन होता है।