Font by Mehr Nastaliq Web

बंकिम चंद्र चटर्जी के उद्धरण

प्रेम तो बुद्धिवृत्तिमूलक होता है। प्रेमास्पद व्यक्ति के सारे गुण जब बुद्धि-वृत्तियों द्वारा परिगृहीत होते हैं, हृदय उन सब गुणों से मुग्ध होकर उनके प्रति आकर्षित और संचारित हो जाता है, तब उस गुणाधार व्यक्ति का संसर्ग पाने की इच्छा और उसके प्रति अनुराग उत्पन्न होता है। इसका ही परिणाम है सहृदयता और परिणाम में आत्मविस्मृति अथवा आत्म-विसर्जन होना, यही है यथार्थ प्रेम।