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महात्मा गांधी के उद्धरण

प्रेम बहुत सहन करता है, जहाँ प्रेम है वहाँ दया है। प्रेम में द्वेष की गुंजाइश ही नहीं, प्रेम में अहम् भाव नहीं, प्रेम में भेद नहीं, प्रेम में अयोग्यता नहीं, प्रेम स्वार्थी नहीं, प्रेम जल्दी नहीं चिढ़ता, प्रेम को दुष्ट विचार नहीं आते, प्रेम अन्यास से प्रसन्न नहीं होता। प्रेम सत्य से ही प्रसन्न रहता है, प्रेम सब कुछ सहन करता है, सब कुछ मान लेता है। प्रेम आशामय है, सब कुछ सह लेता है।