प्रेम का शुद्ध व्यापक स्वरूप अहिंसा है, पर जिस प्रेम में राग या मोह की गंध आती है वह अहिंसा नहीं होगा। जहाँ राग-मोह होता है, वहाँ द्वेष का बीज भी होगा ही। प्रेम में बहुत बार राग-द्वेष पाए जाते है, इसलिए तत्त्वज्ञों ने प्रेम शब्द का प्रयोग न कर अहिंसा शब्द लिया और उसे परम धर्म बतलाया।