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जयशंकर प्रसाद के उद्धरण

नियति दुस्तर समुद्र को पार कराती, चिरकाल के अतीत को वर्तमान से क्षण भर में जोड़ देती है और परिचित मानवता-सिंधु में से उसी एक से परिचय करा देती है जिससे जीवन की अग्रगामिनी धारा अपना पथ निर्दिष्ट करती है।