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रवींद्रनाथ टैगोर के उद्धरण

निःसंदेह स्वार्थ भी त्याग की अपेक्षा रखता है, किंतु स्वार्थी व्यक्ति बाधित होकर ही त्याग करता है। प्रेम में त्याग स्वेच्छा से होता है, वहाँ त्याग में भी आनंद है।

अनुवाद : सत्यकाम विद्यालंकार