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कृष्ण कुमार के उद्धरण

नदी के सत्संग में मन नई रूपरेखाओं में ऐसी-ऐसी बातों को समेट लेता है जो अलग-अलग अर्सों से अछूती, अकेली या खोई पड़ी थी।