मेरे स्वामी! पुरुष या स्त्री का यश ही उनकीआत्माओं की जीवनवाणी है। जो मेरा धन चुराता है, वह केवल कचरा चुराता है, धन तो कुछ नहीं है, वह मेरा था, अब उसका है और हज़ारों का दास रह चुका है। परंतु जो मुझसे मेरा यश छीनता है, वह मुझे ऐसी वस्तु से वंचित करता है जिससे वह स्वयं तो धनवान नहीं बनता परंतु मैं वास्तव में दरिद्र बन जाता हूँ।