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मैनेजर पांडेय के उद्धरण

मीरा के काव्य में रूढ़िवादी लोकमत का विरोध अत्यंत उग्र है, लेकिन उसमें शास्त्रमत की कोई चिंता नहीं है। न उसका कहीं विरोध है और न कहीं सहारा। उसके आकर्षण, भय और भ्रम से पूरी तरह मुक्त है—मीरा की कविता।