मनुष्य उस चोरी को अधम भले ही कहें जो मनुष्यों के सो जाने पर होती है तथा जिसमें विश्वस्त जनों का द्रव्य-अपहरण रूप अपमान होता है और निश्चय ही वह पराक्रम नहीं है। चोरी रूप धूर्तता स्वतंत्र होने के कारण उत्तम है, इस कार्य में किसी का दास बनकर हाथ जोड़ना नहीं पड़ता। और यह कार्य बहुत प्राचीन काल से चला आ रहा है। द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा ने युधिष्ठिर के सोते हुए पुत्रों को (धोखे से) मार डालने में इस मार्ग का आश्रय लिया था, अत: इसमें दोष नहीं है।