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गुरु नानक के उद्धरण

मानवीय जीवन के लिए दो ही ऋतुएँ हैं: सिमरन और नाम हीनता। इनमें से जिस ऋतु के प्रभावाधीन मनुष्य जीवन बिताता है, इसके शरीर को वैसा ही सुख अथवा दुःख मिलता है, उसी प्रभाव अनुसार ही उसका शरीर ढलता रहता है। उसकी ज्ञानेंद्रियाँ ढलती रहती हैं।