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प्रेमचंद के उद्धरण

मक्कार आदमी को अपनी भावनाओं पर जो अधिकार होता है, वह किसी बड़े योगी के लिए भी कठिन है। उसका दिल रोता है मगर होंठ हँसते हैं, दिल ख़ुशियों से मज़े लेता है मगर आँखें रोती हैं, दिल डाह की आग से जलता है, मगर ज़ुबान से शहद और शक्कर की नदियाँ बहती हैं।