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राजेंद्र माथुर के उद्धरण

क्या यह आश्चर्यजनक नहीं है कि हिंदू धर्म ने जिस देश में हर आदमी की हर साँस को हज़ारों साल से क़ायदे-क़ाननों में बाँध रखा है, उस देश में 1947 के बाद ऐसी कोई नैतिकता नहीं पनपी, जो हमारे राज्य को तथा राजनीति को बाँध सके?