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अवनींद्रनाथ ठाकुर के उद्धरण

कल्पना से रहित यथार्थ; मनुष्य के कटे हाथ-पैरों के समान भद्दी और विश्री वस्तु होती है, वैसे मृत देह की स्मृति और कल्पना को जाग्रत करती है।

अनुवाद : रामशंकर द्विवेदी