कई बार ऐसा होता है कि हम पढ़ी हुई रचना को दुबारा पढ़ते हैं तो उतनी तेज़ रफ़्तार से नहीं पढ़ते जिस तरह पहली बार पढ़ी थी। हमारा दिमाग़ इस बार उन छोटी-छोटी चीज़ों का पूरा मज़ा लेना चाहता है जो पहली बार में हमें इस कारण नहीं दिखी थीं कि हम जल्दी से जल्दी कहानी के अंत तक पहुँचकर जान लेना चाहते थे कि आख़िर में होता क्या है।