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जे. कृष्णमूर्ति के उद्धरण

कामवासना या अन्य प्रकार के सुख की स्मृति प्रेम नहीं हैं। सद्गुण को विकसित करने का तथा महान बनने का निरंतर प्रयास भी प्रेम नहीं है।

अनुवाद : हरीश