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रवींद्रनाथ टैगोर के उद्धरण

जो व्यक्ति इस विश्व में सिर्फ़ बदली हुई हवा की ओर ही नज़र रखता है, वही मनुष्य संभवतः कहता है यह सब सपना है, अथवा कहता है सब कुछ विनाश की ओर उन्मुख और अत्यंत भीषण है। वह या तो विश्व का भोग करने के लिए व्यग्र है अथवा विश्व के भीषण देवता को दारुण उपचारों के द्वारा ख़ुश करने का आयोजन कर रहा है।

अनुवाद : रामशंकर द्विवेदी