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गजानन माधव मुक्तिबोध के उद्धरण

जो लोग साहित्य के केवल सौंदर्यात्मक-मनोवैज्ञानिक पक्ष को चरम मानकर चलते हैं, वे समूची मानव-सत्ता के प्रति दिलचस्पी न रख सकने के अपराधी तो हैं ही, साहित्य के मूलभूत तत्त्व, उनके मानवीय अभिप्राय तथा मानव-विकास में उनके ऐतिहासिक योगदान, अर्थात्, दूसरे शब्दों में, साहित्य के स्वरूप का विश्लेषण तथा मूल्यांकन न कर पाने के भी अपराधी हैं।