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जयशंकर प्रसाद के उद्धरण

जीवन में सामंजस्य बनाए रखने वाले उपकरण तो अपनी सीमा निर्धारित रखते हैं, परंतु आवश्यकता और कल्पना भावना के साथ बढ़ती-घटती रहती है।