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रवींद्रनाथ टैगोर के उद्धरण

जिस तरह जगत की अपूर्णता पूर्णता-विरोधी नहीं; बल्कि पूर्णता की ही अभिव्यक्ति है, उसी तरह अपूर्णता का साथी दुःख भी केवल दुःख नहीं, आनंद भी है।

अनुवाद : विश्वनाथ नरवणे