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रवींद्रनाथ टैगोर के उद्धरण

जिस तरह सात रंगों की किरणें मिलकर श्वेत वर्ण बनता है, उसी तरह चित्त का प्रवाह जब विभिन्न भागों में खंडित न होकर, विश्व के साथ अपने अविच्छिन्न सामंजस्य से परिपूर्ण हो जाता है—तब शांतरस का जन्म होता है।

अनुवाद : विश्वनाथ नरवणे